नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय की कार्य प्रणाली और मनमाने ढंग से मामलों के आवंटन को लेकर प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ बगावत की घटना के बाद सोमवार को न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर ने कहा कि संविधान के अनुसार शीर्ष अदालत संचालक का दरबार नहीं है, लेकिन व्यवहार में ऐसा ही हो गया है। जॉर्ज एच. गडबोइस की किताब 'सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया-बिगिनिंग्स' के विमोचन के मौके पर चेलामेश्वर ने कहा कि उदार लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए निष्पक्ष व स्वतंत्र न्यायपालिका की जरूरत है।
उन्होंने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय किसी संचालक का दरबार नहीं है। कम से कम संविधान में ऐसे संचालक की शक्ति का जिक्र नहीं है।"
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा, "लेकिन व्यवहार में शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामले में प्रत्यक्ष रूप से प्रबंधन जैसा काम होता है। साथ ही, देश में उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालों के स्तर पर न्याय प्रशासन के विविध पहलुओं के संबंध में कानून बनाने में यही दस्तूर है।"
शीर्ष अदालत के वरिष्ठ न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को संविधान से असाधारण न्यायाधिकार मिला है तो इसके साथ-साथ पूर्ण न्याय करने का दायित्व भी सौंपा गया है। इसके चलते सर्वोच्च न्यायालय में भारी परिमाण में मामले बढ़ते चले गए हैं। संचित कार्य इतना बढ़ गया है कि उसका निपटारा करना असंभव लगता है।
उन्होंने कहा, "ऐसी स्थिति से क्या संस्थान की गरिमा व प्रतिष्ठा बढ़ती है या फिर क्या यह सचमुच उद्देश्य की पूर्ति करता है। यह उनके लिए परीक्षण व चिंता का विषय है जो इस संस्थान से जुड़े हुए हैं।"
उन्होंने कहा, " समाधान अवश्य ढूंढना चाहिए। सच में समस्या है। समस्या के समाधन के तरीके व साधनों को तलाशने की जरूरत है।"
चेलामेश्वर ने कहा कि भारत की आबादी के आठवें से लेकर छठे हिस्से को सीधे तौर पर न्यायापालिका से वास्ता पड़ता है।