जी नहीं, यह किसी बच्चों का जेल या सरकारी बाल सुधार गृह नहीं.. यह झारखंड के सुदूर गांव का स्कूल है। इसकी साजसज्जा या संसाधन के अभाव पर मत जाइये। इस स्कूल को चलाने की सोच और संचालकों की मानवीय संवेदना गौर करने लायक है। जरा सुनिये यहां रह रहे बच्चों को, आप खुद समझ जाएंगे इनकी व्यथा.. (वीडियो देखें)
तो सुना आपने, अब इन बच्चों की मां यह स्कूल ही है.. शायद इसीलिए संचालकों ने इस स्कूल का नाम रखा है ‘अयंग शिक्षा निकेतन’। जनजातीय भाषा में कुड़ूख में ‘अयंग’ का मतलब होता है ‘मां’!
रांची जिला के मांडर प्रखंड में कैम्बो पंचायत के गुड़गुड़जारी गांव में सात युवा आदिवासियों ने मिलकर यह स्कूल खोल रखा है। वैसे तो इस स्कूल में करीब ढ़ाई सौ बच्चे पढ़ रहे हैं, लेकिन उनमें 60 बच्चे यहां के छात्रावास में रहते हैं। वैसे बच्चे जिनके माता पिता साल में कई महीने रोजगार के लिए दूसरे राज्यों के ईंट भठ्ठों में काम तलाशने जाते हैं।
अयंग शिक्षा निकेतन के मुख्य संचालक हेमू टोप्पो झारखंड के दूरस्थ गांवों की आबादी की मजबूरी बयां कर रहे हैं.. (वीडियो देखें)
वर्ष दो हजार दस-ग्यारह से चल रहे इस स्कूल में आज तक सरकारी सहयोग नहीं मिला। इसके संचालक तो दो टूक कहते हैं, ‘हम नौकरशाही को मनाने पर समय खर्च करने की बजाय, स्कूल में सुधार पर उर्जा खर्च करना पसंद करते हैं।‘ संसाधन जुटाने में संचालक टीम के सदस्यों की भूमिका प्रमुख है। अपनी आय का कुछ हिस्सा और आस पास के गांवों से सब्जियां, अनाज एकत्र जरूरतें पूरी की जाती हैं। हेमू टोप्पो भारत सरकार के एक संस्थान में उच्च अधिकारी पद पर हैं। वह हर हफ्ते छुट्टी के दिन स्कूल में विजिट करते हैं और साथ में लेकर आते हैं बच्चों की जरूरतों के सामान।
अयंग स्कूल में शारीरिक विकास को लेकर भी संचालक सजग हैं। फुटबॉल, बॉलीबॉल के अलावा तीरंदाजी शुरू करने की योजना भी है। बता रहे हैं, संचालक वासुदेव टोप्पो: (वीडियो देखें)
यह विद्यालय भवन दरअसल तीन दशक पहले सामुदायिक विकास भवन के रूप में सांसद-विधायक कोष से बना था। लेकिन उपयोग न होने के कारण स्थिति जर्जर होती चली गई। इस बाबत बता रहे हैं संचालक टीम के सदस्य रणजीत उरावं.. (वीडियो देखें)
और अंतत: बात पहुंचती है विद्यालय की अर्थव्यवस्था और संसाधन पर। हेमू टोप्पो बताते हैं कि हर महीने भोजन के लिए करीब 400 किलो चावल व अन्य सामग्री की खपत है। इसके अलावा शिक्षकों के वेतन आदि मिलाकर करीब 60 से 70 हजार का मासिक खर्च होता है। यह पर्याप्त नहीं। स्कूल व छात्रावास में अपने बच्चों के प्रवेश के लिए बड़ी संख्या में लोग इंतजार कर रहे हैं। लेकिन उसके लिए और संसाधन चाहिए। संस्थान के अध्यक्ष हेमू टोप्पो को अब समाज की ओर से पहल का इंतजार है.. (वीडियो देखें)
आलेख: किसलय