त्रिपुरा हिंसाः फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा रहे दो वकीलों के ख़िलाफ़ UAPA के तहत मामला दर्ज

by Fact Fold Desk on Fri, 11/05/2021 - 20:44

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नई दिल्लीः त्रिपुरा में मुस्लिम विरोधी हिंसा को उजागर करने वाली फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट जारी होने के एक दिन बाद इस टीम का हिस्सा रहे दो अधिवक्ताओं अंसार इंदौरी और मुकेश पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 13 के तहत मामला दर्ज किया गया है. अंसार इंदौरी नेशनल कन्फेडेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स के सचिव हैं जबकि मुकेश यूनियन फॉर सिविल लिबर्टिज के लिए काम करते हैं.

दोनों वकीलों पर आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना), 153बी (राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने से संबंधित), 469 (सम्मान को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (किसी दस्तावेज या अभिलेख के फर्जी होने की बात जानते हुए भी उसे असल के रूप में उपयोग में लाना), 503 (आपराधिक रूप से धमकाना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) के तहत आरोप लगाए गए हैं.

ये अधिवक्ता चार सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने राज्य में मुस्लिम विरोधी हिंसा की रिपोर्टों के बाद क्षेत्र में तनाव के माहौल का दस्तावेजीकरण करने के लिए 29-30 अक्टूबर को राज्य का दौरा किया था.

‘ह्यूमैनिटी अंडर अटैक इन त्रिपुराः मुस्लिम लाइव्ज मैटर’ नाम की रिपोर्ट में कम से कम 12 मस्जिदों, मुस्लिम परिवारों की नौ दुकानें और तीन घरों में तोड़फोड़ के ब्योरे को शामिल किया गया है.

पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन के अधिकारियों द्वारा दायर मामले के नोटिस में कहा गया है कि ‘धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने और शांति भंग करने के लिए विभिन्न धार्मिक समुदायों के लोगों को उकसाने के लिए आपके द्वारा सर्कुलेट की गई सोशल मीडिया पोस्ट और दिए गए बयानों को लेकर आरोप लगाए गए हैं.’

अधिवक्ता मुकेश ने द वायर  को बताया, ‘हम लंबे समय से फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पर काम कर रहे हैं. मेरे लिए यह पूरी तरह से हैरान करने वाली थी. मुझे समझ नहीं आया कि क्या हुआ? हमने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कैसे शांति और सौहार्द के साथ रह रहा समाज इतना अस्थिर हो गया. हमने वास्तव में कुछ मामलों को अच्छी तरह से संभालने के लिए कुछ अधिकारियों और प्रशासन को श्रेय दिया है.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे अभी तक नहीं पता था कि मैंने सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट किया है, जो मुझ पर लगाए गए आरोपों जितना गंभीर है. मेरी सभी टिप्पणियां सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है, जिनमें किसी तरह की साजिश का प्रयास नहीं किया गया.’

इस रिपोर्ट के सह लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी और अमित श्रीवास्तव ने उजागर किया कि हाल में हुई हिंसा प्रशासन की गैर जिम्मेदारी और चरमपंथी संगठनों का परिणाम थी.

रिपोर्ट में कहा गया कि बांग्लादेश में 15 अक्टूबर को दुर्गा पूजा पंडालों और मंदिरों में तोड़फोड़ के बाद बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और हिंदू जागरण मंच जैसे चरमपंथी संगठनों ने त्रिपुरा में अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी के खिलाफ हिंसा भड़काने के लिए विरोध प्रदर्शन किए और रैलियां निकाली.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रैलियों के दौरान हिंदुववादी भीड़ ने पैगंबर मोहम्मद का अपमान करते हुए नारेबाजी की और दंगाइयों ने कुरान की प्रतियां जलाई. इस दौरान मस्जिदों और मुस्लिम लोगों के घरों पर हमले किए गए.

त्रिपुरा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि त्रिपुरा में मुस्लिम विरोधी घटनाओं को लेकर सोशल मीडिया पर कथित तौर पर अफवाह फैलाने को लेकर कई मामले दर्ज किए गए.

रिपोर्ट में कहा गया कि शुरुआती जांच के अनुसार सोशल मीडिया पर फर्जी तस्वीरें और वीडियो शेयर किए गए ताकि राज्य सरकार और पुलिस की छवि को खराब किया जा सके.

वकीलों से त्रिपुरा में हुई हिंसा का उल्लेख करने वाली पोस्ट को सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से तुरंत डिलीट करने को कहा गया है.

उन्हें 10 नवंबर को अगरतला पुलिस के समक्ष पेश किया जाएगा.

उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के बारे में बात करते हुए इंदौरी ने द वायर  को बताया, ‘ये आरोप लगाकर राज्य सरकार अपनी अक्षमता को छिपाने की कोशिश कर रही है. हमारे मामले में जो हुआ, उससे स्पष्ट है कि यह सच्चाई को मुख्यधारा से साझा करने से रोकने का प्रयास है. यह हमें डराने और हमारी आवाज को हटाने का प्रयास है.’

बता दें कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों को लेकर त्रिपुरा में 51 स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हुए.

इन वकीलों द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में जांच समिति का गठन करने की मांग की गई और राज्य में मुस्लिमों के खिलाफ हेट क्राइम में शामिल और तोड़फोड़ में शामिल लोगों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने की मांग की.

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