वन क्षेत्र पदाधिकारी की पैरवी पर एनजीटी से डिबार किये गए सौमित्र सेन

by Fact Fold Desk on Wed, 08/08/2018 - 08:27

सौमित्र सेन अब झारखंड सरकार की ओर से नहीं कर पायेंगे पैरवी, सवाल उठेगा- सरकारी खजाने से अब तक उनको दी गई फीस की भरपाई कौन करेगा? || सौमित्र सेन कोलकाता हाई कोर्ट में स्थायी जज रहे हैं, महाभियोग के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था, बाद में वह कोलकाता में ही वकालत कर रहे हैं..

रांची: सोमवार को एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण), पूर्वी जोन बेंच, कोलकाता के समक्ष रामलखन सिंह बनाम झारखंड सरकार के मामले में सुनवार्इ विडियो कन्फरेंसिंग के माध्यम से एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुर्इ। उक्त न्यायाधिकरण के समक्ष कर्इ मामलों में राज्य सरकार की तरफ से वरीय अधिवक्ता के रूप में कोलकात्ता उच्च न्यायालय के पूर्व स्थायी जज सौमित्र सेन पैरवी करते रहे हैं। राम लखन सिंह के मामले में भी राज्य सरकार की तरफ से सौमित्र सेन पैरवी कर रहे थे। इस मामले में रामलखन सिंह की तरफ अनिल कुमार सिंह, वन क्षेत्र पदाधिकारी पैरवी कर रहे थे। वन क्षेत्र पदाधिकारी श्री सिंह ने माननीय न्यायाधिकरण के समक्ष कोलकात्ता उच्च न्यायालय के पूर्व जज के पैरवी करने पर आपत्ति दर्ज करायी। उनका कहना था, कोलकाता हाईकोर्ट से सेवानिवृति के बाद उसी क्षेत्रीय दायरे में श्री सेन का वकालत करना संविधान के खिलाफ है। अब इसपर सौमित्र सेन ने मामले को न्यायाधिकरण पर छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि यदि न्यायाधिकरण उन्हेंप पैरवी करने की इजाजत देता है तो वो पैरवी करेंगे अन्यथा नहीं। इसपर न्यायाधिकरण के चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने कहा कि There in no discretion to this tribunal in Constitutional matter. It is the Constitution debars his how can he permit. इसपर, श्री सेन ने न्यायाधिकरण से बाहर जाने की र्इजाजत मांगी, तो न्यायाधिकरण के चेयरमैन ने कहा कि वो उनकी उपस्थिति ही दर्ज नहीं करा सकतेे है। इस ऑब्जयर्वेशन के साथ माननीय न्यायाधिकरण ने मामले की सुनवार्इ पूरी की। बताते चलें कि कुछ समय पहले जस्टिस सेन पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया चली थी। लेकिन दोनों सदनों से सहमति के पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफा दे दिया था।

कौन भरेगा फीस?
अब प्रश्न यह भी उठेगा कि जब भारत संविधान का अनुच्छेद 220 किसी उच्च न्यायालय के पूर्व स्थायी जज को उक्त उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के किसी भी न्यायालय या किसी भी प्राधिकार के समक्ष उपस्थित होने की मनाही करता है, तो किस परिस्थिति में तथा किस पदाधिकारी ने उनको माननीय राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के समक्ष उपस्थित होने के लिये प्राधिकृत किया। क्या अब तक राज्य सरकार के द्वारा गैर संवैधानिक कार्य के लिये श्री सौमित्र सेन को दिये गए व्यय की वसूली उस पदाधिकारी से करेगी, जिसने श्री सेन की नियुक्ति माननीय न्यायाधिकारण के समक्ष सरकार के वरीय अधिवक्ता के रूप में की है? क्या राज्य सरकार इस मामले में जबावदेही तय करेगी?


मुकदमा किस विषय पर है?
ये मामला झारखण्ड के वनों के भारी पैमाने पर अतिक्रमण से संबंधित है। जिसमें आवेदक बरही विधान सभा क्षेत्र के पूर्व विधायक रामलखन सिंह, ने माँग की है कि इस समस्या के समाधान के लिये वनों का DGPS सर्वे कराकर सेटेलार्इट से निगरानी की जाय, तथा अतिक्रमण का पता लगाकर अतिक्रमण को दूर किया जाय। सुनवार्इ के दौरान दुमका में वन भूमि पर बिना भारत सरकार की पुर्वानुमति के राजभवन, पुलिस लार्इन, डीआर्इजी आवास, स्टेडियम, महिला कॉलेज बनाये जाने का मामला भी प्रकाश में आया है। इन मामलों में माननीय न्यायाधिकरण के हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार ने अतिक्रमित वन भूमि को विनियमित करने वास्ते अतिक्रमित भूमि के बदले गैर वन भूमि उपलब्ध कराने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को दिया है।


कई अन्य मुकदमों पर भी हुई सुनवाई
मामले की सुनवार्इ के दौरान वन क्षेत्र पदाधिकारी  अनिल कुमार सिंह, ने माननीय न्यायाधिकरण का ध्यान वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा-3A तथा 3B की तरफ आकृष्ट  किया जिसके अनुसार इस तरह के मामलों में 15 दिन के साधारण सजा के प्रावधान अंकित है, तथा इन मामलों में जिस विभाग/संस्थान से वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंधन का मामला प्रकाश में आता है, प्रथम दृष्टषया उस विभाग/संस्थान के प्रमुख को दोषी मानने के प्रावधान अंकित हैं। वन क्षेत्र पदाधिकारी श्री सिंह ने उक्त मामले में वन संरक्षण अधिनियम 1980 के धारा-3A तथा 3B को सार्थक कराने का आग्रह किया है। इसके साथ ही मामले से संबंधित सुनवार्इ पूरी हुर्इ तथा फैसला सुरक्षित रख दिया गया।

इस मामले में माननीय न्यायाधिकरण के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के 6 जुलार्इ 2011 Lafarge Umiam Mining Private Limited (“Lafarge”) (T.N. Godavarman Thirumulpad v. Union of India, Interim Applications 1868, 2091, 2225 to 2227, 2380, 2568, and 2937 in W.P. No. 202 of 1995) के फैसले का हवाला देकर राज्य के वनों का Geo Referenced District Forest Map बनाने में हुर्इ प्रगति के बारे में प्रतिवेदन समर्पित करने का निर्देश दिया था, जिसका अनुपालन करते हुए राज्य सरकार के द्वारा कोर्इ प्रगति प्रतिवेदन समर्पित नहीं किया था। 

रिपोर्ट : अनिल कुमार सिंह
(लेखक वन क्षेत्र पदाधिकारी हैं। यह आलेख उन्‍होंने ही तैयार किया है।)

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