नई दिल्ली: देश के प्रख्यात पर्यावरणविद् नित्यानंद जयरामन ने चेताया है कि तमिलनाडु के तूतीकोरिन में लोगों की जिंदगी जीने की जंग 13 लोगों की मौत के साथ खत्म तो हो गई, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में साफ पानी, साफ वायु और अपने अच्छे स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित लोगों के लिए अभी भी खतरा टला नहीं है।
उनका कहना है, "देश में जब-जब लोगों के जीवन व स्वास्थ्य पर ऐसे संयंत्रों से बुरा प्रभाव पड़ेगा तो वे अपनी रक्षा के लिए आवाज उठाएंगे और अगर हम अभी नहीं संभले तो देश में तूतीकोरिन जैसी और भी घटनाएं होंगी।"
हाल ही में तमिलनाडु के तूतीकोरिन में हुई स्टरलाइट तांबा संयंत्र की घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया। संयंत्र को बंद कराने के लिए स्थानीय लोगों ने राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और इस घटना में व्यापक हिंसा हुई। पुलिस की गोलीबारी में 13 लोगों की मौत के बाद राज्य सरकार ने इस संयंत्र को बंद करने का आदेश दिया, जिसपर देश के पर्यावरणविदों ने सरकार और संयंत्र पर लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया।
पर्यावरणविद् जयरामन ने आईएएनएस को दिए विशेष साक्षात्कार में तूतीकोरिन की घटना के बारे में कहा, "देश में जब-जब लोगों के जीवन और स्वास्थ्य पर ऐसे संयंत्रों से बुरा प्रभाव पड़ेगा तो वह अपनी रक्षा के लिए आवाज उठाएंगे और अगर हम अभी नहीं संभले तो देश में तूतीकोरिन जैसी और घटनाएं होंगी। इस घटना से देश के अलग अलग हिस्सों में लोग पर्यावरण को लेकर सचेत होंगे और उसकी सुरक्षा के लिए आवाज उठाएंगे। जैसा की तूतीकोरिन में हुआ।"
उन्होंने कहा, "इस प्रकार के संयंत्र विभिन्न तरीकों से लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं। उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं और साफ पर्यावरण, साफ जल और साफ वायु के उनके अधिकार से उन्हें वंचित करते हैं।"
जयरामन ने कहा, "हर किसी को साफ पानी व वायु का अधिकार है और किसी को भी इससे वंचित नहीं किया जा सकता। देश में जहां-जहां जिस भी भाग में ऐसे संयंत्र मौजूद हैं, वहां के लोगों को साफ पानी और वायु से वंचित रहना पड़ता है। सभ्य समाज के रूप में हमारा और सरकार का यह दायित्व है कि सभी को साफ पानी और वायु मुहैया कराने के लिए कदम उठाए।"
तूतीकोरिन की हिंसा में 13 लोगों की मौत के सवाल पर उन्होंने आईएएनएस को बताया, "सरकार को दो दशक पहले ही संयंत्र को बंद करने के कदम उठाने चाहिए थे। अगर सरकार ने ऐसा किया होता तो उन 13 लोगों को जान नहीं गंवानी पड़ती। ऐसे संयंत्र लोगों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं, इसलिए उन्होंने इसके लिए आवाज उठाई।"
पर्यावरण की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण अभियान चलाने वाली गैर सरकारी संस्था ग्रीनपीस ने आईएएनएस से कहा, "स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण अधिकार के लिए लड़ने वाले तूतीकोरिन के निवासियों पर पुलिस द्वारा हिंसा का अत्यधिक उपयोग आश्चर्यजनक है, इसने देश को झकझोर कर रख दिया है। वे सिर्फ वेदांता के स्टरलाइट तांबा संयंत्र को बंद करने की मांग कर रहे थे।"
ग्रीनपीस इंडिया की अभियान निदेशक दिया देब ने कहा, "पुलिस को प्रदर्शनकारियों की हत्या का कोई अधिकार नहीं है, विशेषकर वह, जो वर्षों से प्रदूषित हवा और पानी से पीड़ित हैं। प्रदूषण एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है, जिसे तुरंत हल करने की जरूरत है। पर्यावरण मानदंडों का पालन न करने के लिए उद्योगों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। कई हजार नागरिक अपनी आवाज उठा रहे हैं। यह इस मुद्दे की महत्वता बताता है, इसलिए इसे तुरंत हल किया जाना चाहिए।"
वहीं द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी ) के महानिदेशक डॉ. अजय माथुर ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में तूतीकोरिन की घटना के बारे में कहा, "यह उद्योग के लिए संदेश है कि स्थानीय लोगों को वह दरकिनार नहीं कर सकते हैं, और तूतीकोरिन में यह समस्या बहुत सालों से थी। संयंत्र को चहिए कि वह स्थानीय लोगों से बात करे और उनकी समस्याओं को सुने। अगर यह पहले किया जाता तो इस तरह की घटना नहीं होती, लोगों की अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती और न ही प्लांट को बंद करने की नौबत आती।"
उन्होंने कहा, "पर्यावरण की रक्षा की जिम्मेदारी सभी को लेनी होगी। जिम्मेदारी से बचकर आप लोगों का भला नहीं कर सकते। तूतीकोरिन में जो घटना हुई वह निसंदेह देश के अन्य हिस्सों में हो सकती, क्योंकि इस घटना के बाद लोगों में जागृति आई है। यह लोगों की समस्या है, जिसका निपटारा होना चाहिए। इसलिए प्लांट में प्रदूषण से निपटने के लिए यंत्र लगने चाहिए। समय से पहले यह करना जरूरी है, क्योंकि संयंत्र बंद होते जाएंगे और इससे स्थानीय लोगों में रोजगार की कमी होगी।"
संयंत्र के बंद होने से रोजगार पर पड़ी मार के सवाल पर पर्यावरणविद् नित्यानंद जयरामन ने कहा, "भारत के संविधान के मुताबिक 41-43 (ए) सीधे श्रमिक अधिकारों की बात करता है। संविधान के तहत राज्य सरकारा को रोजगार के लिए सभी को समान अवसर देने चाहिए। राज्य सरकार को अपने ऊपर जिम्मेदारी लेकर इनके रोजगार को सुनिश्चित करना चाहिए, क्योंकि भारत का संविधान सभी को बराबर रोजगार की गारंटी देता है।" -जितेंद्र गुप्ता
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