भीकमपुरा (राजस्थान): किसान नेता रामपाल जाट का कहना है कि सरकार बार-बार किसानों के कर्ज की माफी की बात करती है, आखिर माफी किस बात की? किसानों ने क्या कोई अपराध किया है? किसान कोई भिखारी नहीं है, अगर टेबल पर बैठकर बात हो तो सरकार ही किसानों की देनदार निकलेगी।
राजस्थान के अलवर जिले के भीकमपुरा में किसानों की समस्याओं और आगामी रणनीति तय करने के लिए शनिवार से शुरू हुए तीन दिवसीय चिंतन शिविर में हिस्सा लेने आए रामपाल जाट ने आईएएनएस से खुलकर चर्चा की।
उन्होंने कहा, "केंद्र हो या राज्य सरकारें, किसानों के कर्ज माफी की बात करती है, आखिर माफी किस बात की, जो अपराध करता है, उसे माफी चाहिए, किसानों ने न तो कोई अपराध किया है और न ही उन्हें माफी मांगने की जरूरत है। किसान को कर्ज से मुक्त करना सरकार का दायित्व है। वास्तव में किसान नहीं, सरकार है किसान की देनदार।"
सरकारों के किसान विरोधी और उद्योगपति हितैषी होने का दावा करते हुए रामपाल ने कहा, "वर्ष 2004 से वर्ष 2017 तक की केंद्र सरकार ने 68,00000 करोड़ रुपये का उद्योगपतियों का कर्ज माफ किया है, सिर्फ तीन साल की यह राशि 17,0000 करोड़ रुपये है। अगर उद्योगों को दी गई छूट की तीन साल की राशि ही किसानों को दे दी जाए, तो किसान खुशहाल हो जाएगा, क्योंकि किसान पर कर्ज ही 12,60000 करोड़ रुपये है।"
उन्होंने कहा, "हमारे संविधान में है कि किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। सरकारों और नेताओं को इसका पालना करना चाहिए। कर्मचारियों का सातवां वेतनमान आया तो सरकार ने एरियर भी दिया, वहीं किसानों का तो सिर्फ एक ही किसान आयोग बना है। उसकी रिपोर्ट भी आ गई, जिसे स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ पर लागू किया जाना था। इसलिए हमारी मांग है कि बीते 10 वर्षो का किसानों को ठीक उसी तरह से लाभ दो, जैसा कर्मचारियों को दिया जाता है।"
रामपाल ने अपनी बात आगे बढ़ते हुए कहा, "जब से किसान आयोग की रिपोर्ट आई है तब से, यानी 10 वर्षो के समर्थन मूल्य जिसे सरकार गारंटी मूल्य कहती है, का भुगतान करें। मतलब समर्थन मूल्य का जो अंतर रहा, उसके घाटे की भरपाई सरकार को करनी है। अनुमानत: किसान का यह घाटा 150000 करोड़ रुपये है और 10 वर्षो के हिसाब वह 15,00000 करोड़ रुपये हो जाता है, वहीं किसानों पर कर्ज 1250000 करोड़ रुपये ही है। इस तरह किसानों का सरकार पर ढाई लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की देनदारी है।"
किसान नेता ने कहा कि सरकार उनके साथ एक टेबल पर बैठकर बात करे, अगर किसान पर देनदारी निकलेगी तो वे सरकार को देंगे और सरकार की निकले तो वह किसानों को दे। सिर्फ बातें न करे, किसानों को कर्ज की 'माफी' नहीं, कर्ज से मुक्ति चाहिए।
कभी भाजपा की राजस्थान इकाई के महासचिव और उच्च न्यायालय के अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे रामपाल जाट ने आगे कहा कि देश के राजनीतिक दलों का जो चरित्र सामने आया है, वह उसे किसान हितैषी नहीं ठहराता। जब तक वे सत्ता में नहीं आएंगे, तब तक किसानों की बात करेंगे और राज में आते ही किसानों को भूल जाएंगे। राजनेताओं के लिए किसान उस डिस्पोजेबल प्लेट के समान हो गए हैं, जिसमें रखकर जलेबी तो खाओ, मगर बाद में प्लेट को फेंक दो और भूल जाओ। इतना ही नहीं, किसान को कठपुतली बना दिया गया है।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, "राजनीतिक दलों का काम हो गया है बांटकर कमजोर कर देना। सरकार ने यही चाल किसान संगठनों के साथ अपनाई है, सत्ता में बैठे लोग किसान आंदोलनों को बांटकर राज करना चाह रहे हैं। मगर अब किसान एकजुट हो चला है, आने वाले समय में सरकार को सबक सिखाएगा। अब तो किसानों का नारा ही है- चलो राज की ओर।"
रामपाल ने कहा कि राजनीतिक दलों का एक मात्र लक्ष्य सत्ता हासिल करना है, कोई मुसलमानों को डरा कर सत्ता पाता है तो कोई श्मशान-कब्रिस्तान, ईद-दिवाली और राम मंदिर के नाम पर सत्ता हासिल करता है। दोनों प्रमुख दलों का चरित्र एक जैसा ही है।
एक सवाल के जवाब में रामपाल ने कहा कि देश की प्रगति किसान की प्रगति पर ही निर्भर है, देश को नंबर एक बनाना है तो किसानों को खुशहाल बनाना होगा, उसकी उपज की लागत का डेढ़गुना दाम देना होगा।
राजनीतिक दलों की बंटवारे की राजनीति का जिक्र करते हुए किसान नेता ने कहा, "देश के प्रधानमंत्री जिन शब्दों का इस्तेमाल करके समाज को बांटने का काम कर रहे हैं, यह किसी भी सूरत में ठीक नहीं है। कोई प्रधानमंत्री कहे कि हर गांव में कब्रिस्तान है, इसलिए श्मशान होगा, ईद पर लाइट जलती है तो दीपावली पर जलेगी, सवाल है कि उन्हें ऐसा करने से रोका किसने है, वे करें, मगर अपने राजनीतिक लाभ के लिए देश को न बांटें।" -संदीप पौराणिक
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