नई दिल्ली: भारत में उन लोगों के नाम-ओ-निशान मिटाने की कोशिश की जा रही है जिन्होंने देश निर्माण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और जो देश के वास्तुकार थे। यह बात हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक अशोक वाजपेयी ने 'अल्ताफ हुसैन हाली: एक कवि और एक सुधारक' के विषय पर आयोजित सेमिनार का उद्घाटन करते हुए कही। रजा फाउंडेशन और हाली पानीपती ट्रस्ट के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली जैसे महान कवि, समाज सुधारक और देश के वास्तुकार को हम भूलते जा रहे हैं। देश में जानबूझ कर उन के नामोनिशान मिटाने के प्रयास किए जा रहे हैं और जो लोग देश को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं उन्हें नायक के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास इसी भूलते जाने के खिलाफ है और यह प्रयास जारी रहेगा।
रजा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी वाजपेयी ने कहा कि हाली ऐसे कवि थे जिन्होंने उर्दू शायरी का दायरा बड़ा किया, और महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों पर ध्यान दिया। उर्दू आलोचना के संबंध में उन्होंने कहा कि हाली ने मुकदमा और शेर-ओ-शायरी तनसनीफ करके उर्दू में आलोचना की नींव रखी और उर्दू शायरी को निर्देशित किया। उन्होंने हाली के हवाले से कहा कि बात तो साझी विरासत और गंगा जमुनी तहजीब के संबंध में की जाती है लेकिन कोई भी ऐसा नहीं करता है।
उर्दू के मशहूर लेखक और आलोचक प्रोफेसर शमीम हनफी ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों को भुलाए जाने की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे शब्दकोश में एक शब्द इतिहास है जिसे बदलने की बात की जा रही है और रूपांतरण भी किया जा रहा है लेकिन यह बात रखनी चाहिए कि इतिहास केवल इतिहास होता है जिसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता और वो सैकड़ों स्थानों पर सुरक्षित रहता है।
हाली का समय कठिन था, जहां एक तरफ वो गालिब के शिष्य थे दूसरी तरफ उन्होंने गालिब का अंदाज नहीं अपनाया और अपनी शायरी में उनकी नकल नहीं की। उन्होंने कहा कि मौलाना हाली जहां एक तरफ बड़े कवि थे वहीं एक समाज सुधारक भी थे जिस कारण एक तबका उन्हें पसंद नहीं करता था। विशेष रूप से, इस संदर्भ में उन्होंने लखनऊ का उल्लेख करते हुए अवध पंज के बारे में बताया।
कनाडा से आए प्रसिद्ध उर्दू कवि तकी आब्दी ने कहा कि हाली एक ऐसे महान कवि हैं जिन्होंने सभी तीन भाषाओं, उर्दू, फारसी और अरबी में कवितायें लिखी हैं और फिर उस समय मुस्लिमों की हालत, और स्थिति की पहचान की।
प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु खरे ने इस अवसर पर कहा कि मुसलमानों ने अल्ताफ हुसैन से नहीं सीखा। केवल वो लोग उन्हें अपना लेते थे जो अपनी परिस्थितियों में सुधार कर सकते थे। उन्होंने कहा कि हाली ने एक नया भारतीय काव्य शास्त्र प्रस्तावित और परिभाषित किया जोकि उनके समकालीनों में शायद ही किसी भी भारतीय भाषा में ऐसी पहल रखने वाला कोई दूसरा था।