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कोरोना महामारी के दौरान बनाए गए पीएम केयर्स फंड पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया है कि पीएम केयर फंड सरकार का फंड नहीं है और इसमें एकत्र की गई राशि भारत के सरकारी खजाने में नहीं जाती है। पीएमओ ने ये दलील हाईकोर्ट में दी है। कहा है पीएम केयर फंड को न तो सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में 'पब्लिक अथॉरिटी' के रूप में लाया जा सकता है, और न ही 'राज्य' के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है।
इस फंड को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में वकील सम्यक गंगवाल ने एक याचिका दायर की है। इसमें मांग की गई है कि पीएम केयर्स फंड को राज्य का घोषित किया जाए और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इस आरटीआई के दायरे में लाया जाए।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को तय की है।
पीएमओ में अवर सचिव प्रदीप कुमार श्रीवास्तव द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है, "पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, ट्रस्ट द्वारा प्राप्त धन के उपयोग के विवरण के साथ ऑडिट की गई रिपोर्ट ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दी जाती है।" उन्होंने याचिका के जवाब में कहा कि ट्रस्ट को जो भी दान मिले वो ऑनलाइन, चेक या फिर डिमांड ड्राफ्ट के जरिए मिले हैं। ट्रस्ट इस फंड के सभी खर्चों का ब्यौरा अपनी वेबसाइट पर अपटेड करता है।
सम्यक गंगवाल द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि पीएम द्वारा मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर देश के नागरिकों की मदद करने के लिए एक बड़े उद्देश्य के साथ पीएम-केयर फंड का गठन किया गया था और इसे अधिक मात्रा में दान मिला। याचिका में कहा गया कि ट्रस्ट को दिसंबर 2020 में पीएम-केयर्स फंड की वेबसाइट पर जानकारी दी गई थी कि यह संविधान या संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन नहीं बनाई गई है। याचिका में कहा गया कि पीएम केयर्स फंड को अपनी वेबसाइट के डोमेन में 'जीओवी' का प्रयोग करने से रोकना चाहिए।