मुंबई के मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओ, वकीलों और पूर्व न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश से सम्बंधित पत्र को माओवादीयों की कारतूत बताने वाले महाराष्ट्र पुलिस और सरकार जमकर आलोचना की।
उन्होंने कहा है कि यह पत्र झूठा है, यह सब सरकार के इशारो पर हो रहा है और यह पत्र का कोर्ट-कचहरी की भाषा में ‘कोई’ भी महत्व नहीं है।
पत्र के बरामद होने के आरोप में पुणे पुलिस ने मुंबई, नागपुर और दिल्ली से 5 स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है और उन्हें अपनी हिरासत में रखा है। जो कार्यकर्ता इस वक़्त पुलिस हिरासत में है उनके नाम एडवोकेट सुरेंद्र गैडलिंग, प्रोफेसर शोमा सेन, एक्टिविस्ट सुधीर धवाले, महेश राउत और रोना विल्सन है।
मुंबई प्रेस क्लब में देशभर के प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ताओ, वकील और पूर्व न्यायाधीश ने इन कार्यकर्ताओ का समर्थन किया और इन्हे रिहा करने की अपील करने के लिए एक प्रेस सम्मेलन का आयोजन किया।
इस प्रेस सम्मेलन को मुंबई उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश बीजी कोल्से पाटिल, भारत के उच्त्तम न्यायालय की पूर्व अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल इंदिरा जयसिंह, मुंबई उच्च न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट मिहिर देसाई, एडवोकेट माहरूफ अडेनवाला, फ़िरोज मीठीबोरवाला और प्रेरणा अभियान के सादिक कुरैशी ने संबोधित किया।
इन लोगों का कहना है कि सरकार दलितो, आदिवासियों, मानवाधिकार संगठनों और मुस्लिमो की ताकत से परेशान हो गई है और सरकार इस ताकत को दबाने के लिए उनकी आवाज को इन गैरमानवीय और गैर संवैधानिक तरीको से दबा रही है।
उनका कहना ये भी है कि यह पत्र न तो अभियुक्तों को दिखाया गया है ना ही उनके वकिलो को। उनका कहना है कि यह सब सिर्फ देश की जनता को देश की असली समस्याओ से भटकाने की साजिश है।