आज अगर हम अपने देश के टीवी चैनलों को देखें तो उन्हें तीन तलाक और योगी का रोग लग चुका है, ऐसा लगता है कि देश में कहीं कुछ हो नहीं रहा हैं। इनको देखकर लग रहा है कि देश में सिर्फ एक समस्या है और वो है तीन तलाक और देश में कोई कुछ कर रहा है तो वो है उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी, अचानक कुलभूषण की फाँसी की खबर ने चैनलों का ध्यान खींचा है लेकिन फिर भी इनका केन्द्रबिन्दु योगी और तीन तलाक पर ही रहने वाला है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि तीन तलाक के कारण मुस्लिम महिलायें परेशानियों का सामना कर रही हैं लेकिन ये मुद्दा इतना भी बड़ा नहीं है कि इसके लिये सब कुछ भुला दिया जाये। उच्चतम न्यायालय इस पर लगातार सुनवाई करने वाला है और उम्मीद है कि इसका कुछ सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेगा। हमारे देश की महिलाओं की समस्यायें अनगिनत हैं ऐसे में सिर्फ तीन तलाक को लेकर रोज बहस करना कहाँ तक उचित कहा जायेगा। इसे जल्दबाजी में खत्म नहीं किया जा सकता, अदालत के फैसले के बाद भी सरकार के कानून द्वारा ही इसे सही तरीके से रोका जा सकता है। इसमें काफी समय लगने वाला है लेकिन टीवी मीडिया तीन तलाक के बहाने पूरे मुस्लिम समाज को घेरने में लगा हुआ है। जब से यूपी में भाजपा सरकार आई हैं तब से ये महसूस हो रहा है कि तीन तलाक का मुद्दा कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ रहा है। मुस्लिम महिलायें इस मामले को लेकर यूपी की महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा तथा योगी जी से भी मिलकर मदद की गुहार लगा चुकी है।
मेरा स्पष्ट रूप से मानना है कि तीन तलाक कोई समस्या नहीं है बल्कि समस्या है बिना किसी वजह के एक पति द्वारा अपनी पत्नी को तलाक-तलाक बोलकर घर से बाहर करके बेसहारा छोड़ देना। मुस्लिम महिलायें तीन तलाक के खिलाफ नहीं बल्कि अपने हक के लिये लड़ रही हैं। भारतीय समाज में ज्यादातर महिलायें अपने पति पर आश्रित होती है इसलियें हिन्दु कोड बिल द्वारा उन्हें तलाक देने पर उचित मुआवजा तथा गुजारा भत्ता देने का प्रावधान किया गया है, मुस्लिम समाज की महिलाओं की भी कुछ ऐसी ही माँगे हैं। बाबा साहब अम्बेडकर भी चाहते थे कि इस कानून में मुस्लिम समाज की महिलाओं को भी शामिल किया जाये लेकिन उस वक्त नेहरू जी ने राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं किया। मुस्लिम विद्वान कहते हैं कि अल्लाह को तलाक बेहद नापसन्द है इसलिये तलाक के लिये सख्त मनाही की गई है और इसी वजह से हलाला का प्रावधान किया गया है। एक बार में तीन बार तलाक बोलना भी कुरान के खिलाफ माना जाता है लेकिन साथ ही ये परम्परा चल रही है कि कोई अगर अपनी पत्नी को एक साथ तीन बार तलाक बोल दें तो उसे मुस्लिम धार्मिक नेता सही करार देते हैं। ये अजीब बात है कि तीन तलाक को गलत भी मानते हैं, कुरान के खिलाफ भी मानते हैं लेकिन फिर भी उसे उचित ठहराते हैं। जब आप मानते हैं कि एक बार में तीन तलाक बोलना गलत हैं और तलाक देने की पूरी प्रक्रिया है तो पूरी प्रक्रिया का पालन किये बिना दिया जाने वाला तलाक अवैध घोषित किया जाना चाहिये। इससे साबित होता है कि तीन तलाक गलत नहीं है बल्कि तीन तलाक की गलत व्याख्या की गई है। कुछ मौलाना अपने फायदे के लिये इसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
एक सर्वेक्षण में यह बात कही गई है कि मुस्लिम समाज में अन्यों समाजों के मुकाबले कम तलाक दिये जाते हैं। इसके लिये मुस्लिम समाज की प्रशंसा की जानी चाहिये कि तलाक देने का इतना आसान रास्ता होने के बावजूद मुस्लिम समाज में तलाक की आँधी नहीं चल रही है। वास्तव में मुस्लिम समाज अपनी समस्या का सही तरीके से अपने घर के भीतर इलाज नहीं कर सका है इसलिये मामला सड़कों पर आ गया है। काँग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति ने शाहबानों को अपने हक से वंचित करके मुस्लिम महिलाओं के लिये रास्ता बन्द कर दिया था लेकिन अब मुस्लिम महिलायें विद्रोह कर रही हैं। केन्द्र सरकार का रवैया भी मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में है तथा यूपी में भाजपा सरकार आने के बाद मुस्लिम महिलाओं को नई ताकत मिली है। धर्मनिरपेक्ष नेताओं के लिये ये सोचने का विषय है कि मुस्लिम महिलाएं अपनी समस्याएं उनके पास लेकर क्यों नहीं आईं। एक सच्चायी यह भी है कि हिन्दु महिलाएँ भी इतने अधिकार होने के बावजूद तलाक होने पर उचित मुआवजे से वंचित रहती है। निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग में तलाक होने पर सरकारी कर्मचारियों को छोड़कर ज्यादातर पुरूष कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला देकर बच निकलते हैं। हमें नहीं भूलना चाहिये कि अनगिनत हिन्दु महिलाएं बिना किसी तलाक के बेसहारा जिन्दगी जीने पर मजबूर हो रही हैं क्योंकि उनके पतियों ने खुद को गरीब साबित कर दिया है अथवा वो अपनी लड़ायी लड़ने में कमजोर हैं।
तीन तलाक की शिकार मुस्लिम महिलाएं खोज-खोज कर निकाली जा रही है ताकि मीडिया को तीन तलाक के खिलाफ मसाला मिलता रहे। तीन तलाक के खिलाफ लड़ायी मुस्लिम समाज के खिलाफ लड़ायी बनती जा रही है जबकि ये लड़ायी पुरूष सत्तात्मक समाज के खिलाफ है जिसमें किसी भी धर्म के पुरूष पीछे नहीं हैं। मुस्लिम महिलाओं की बात को ध्यान से सुना जाना चाहिये, वो धार्मिक प्रावधानों के भीतर ही अपनी समस्या का हल चाहती है। इस सच्चायी को समझना चाहिये कि मुस्लिम महिलाएं धर्म में हस्तक्षेप के खिलाफ हैं। संघ और भाजपा की बढ़ती ताकत से मुस्लिम समाज पहले से ही भयभीत है क्योंकि संघ और भाजपा के खिलाफ उसके मन में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं द्वारा इतना जहर भर दिया गया है कि उसे हजम करने में कई साल लगेंगे। सरकार को इस मामले में सोच समझकर कदम उठाना चाहिये, तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलन्द हो रही है और जरूरी है कि मुस्लिम महिलाओं को उनका हक मिलें लेकिन इस प्रक्रिया में देश का नुकसान नहीं होना चाहिये। मुस्लिम समाज को ऐसा नहीं लगना चाहिये कि सरकार उनके धर्म में दखल दे रही है जबकि जिस तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठायी जा रही है वो इस्लाम के भी खिलाफ ही है। सरकार के लिये जरूरी है कि वो मुस्लिम समाज को कुछ समय दें ताकि कुछ बदलाव करते समय ऐसा महसूस न हो कि उनके साथ कोई जबरदस्ती की जा रही है। धीरे-धीरे मुस्लिम धर्म-गुरू भी तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलन्द कर रहे हैं। मुस्लिम समाज समझ रहा है कि वो अब महिलाओं की आवाज को ज्यादा दिनों तक दबा नहीं सकता इसलिये वो भी खुद को बदलाव के लिये तैयार कर रहा है, ऐसे समय में की गई कोई भी जल्दबाजी घातक साबित हो सकती है। इसका एक पहलू ये भी है कि तीन तलाक के बहाने मुस्लिम महिलाओं में जागृति आ रही है जिससे उनमें एक विद्रोही मानसिकता पैदा हो रही है, जो उन्हें आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करेगी। अगर सरकार अभी इस मामले में हस्तक्षेप करके किसी प्रकार कानून द्वारा तीन तलाक को पूरी तरह से बैन कर देती है तो ये लड़ायी थम जायेगी। मेरा मानना है कि महिलाओं को अपने संघर्ष में आगे बढ़ने देना चाहिये क्योंकि ये पहला मौका है जब मुस्लिम महिलायें अपने हक के लिये सड़कों पर उतर रही है। तीन तलाक के अलावा भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिनसें मुस्लिम महिलायें परेशान है। बड़ी खुशी होती है ये देखकर कि जिन महिलाओं को वर्षों से दबाकर रखा गया वो अपना हक पाने के लिये चल पड़ी है और अब सरकार को कोई जरूरत नहीं है कि वो इस मामले में दखल दें। मुस्लिम समाज में बहस चल पड़ी है और इसका बेहतर परिणाम सामने आयेगा।
हमारे देश में तलाक इसलिये समस्या है क्योंकि महिलाएँ पुरुषों पर आश्रित हैं, उनमें शिक्षा की कमी है इसलिये वो पति द्वारा तलाक देने पर सड़क पर आ जाती है। कोई भी स्वाभिमानी महिला उस पुरूष के साथ एक पल भी रहना नहीं चाहेगी जो उसे बोझ मानता हो लेकिन मजबूरी में महिलाएँ ये भी बर्दास्त करती है। अगर महिलाओं को तलाक की स्थिति में उचित मुआवजा मिल जाये तो उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। मुस्लिम धर्मगुरूओं को तलाक की सही परिभाषा समाज के सामने रखनी होगी, क्रोध, आवेश या नशे में एक बार में तीन तलाक बोल देना तलाक नहीं कहा जा सकता, ये इस्लाम ही कहता है फिर इसे रोका क्यों नहीं जा रहा है। ज्यादातर मुस्लिम देश तीन तलाक पर बैन लगा चुके हैं इसलिये इसे जारी रखने का कोई तुक नहीं है लेकिन इसकी माँग पूरे मुस्लिम समाज से आनी चाहिये। तीन तलाक देने की पूरी प्रक्रिया अपनाने पर तीन तलाक को वैध माना जा सकता है लेकिन पति द्वारा तलाक देने की स्थिति में पत्नी को उचित मुआवजा और गुजारा भत्ता देने का प्रावधान जरूरी होना चाहिये। पत्नी को भी तलाक देने का उतना ही हक मिलना चाहिये जितना की पति को होता है। मेरा स्पष्ट रूप से मानना है कि केवल तीन तलाक ही समस्या नहीं है इसलिये ये संघर्ष रूकना नहीं चाहिये। मुस्लिम महिलाओं का संघर्ष पूरे देश की महिलाओं को एक नई ताकत दे रहा है और महिलाओं में जागृति आ रही है ये तीन तलाक पर रूकने वाली नहीं है। ये परिवर्तन की लड़ायी है इसे तीन तलाक पर रूकना भी नहीं चाहिये लेकिन इसमें सरकार को अभी कूदने की जरूरत नहीं है। मीडिया को संयम से काम लेना चाहिये इस मामले पर चल रही बहस में धर्म को नहीं खींचना चाहिये। हमें नहीं भूलना चाहिये कि इस्लाम ने सबसे पहले महिलाओं को उनका हक दिया था। वक्त के साथ बदलाव जरूरी है वो बदलाव करना ही पड़ेगा इससे इस्लाम बच नहीं सकता। शरियत पर चलने वाले देश अगर बदलाव कर सकते हैं तो हमारे देश में बदलाव क्यों नहीं हो सकता जबकि हमारा देश तो संविधान पर चल रहा है। हमारे देश के मुस्लिमों को उन देशों से सबक लेना चाहिये जिन्होंने बदलाव करके तरक्की की है।
विचार: सीमा पासी (यह आलेख लेखक के निजी विचार हैं)