रेलवे सुरक्षा पर काकोडकर समिति की सिफारिशों के पांच साल के बाद भी उसे सही तरह से लागू नहीं किया जा सका। अगर इसे सही तरह से व्यवहार में लाया जाता तो शायद शनिवार को मुजफ्फरनगर में हुए भयावह रेल दुर्घटना से बचा जा सकता था।
गौरतलब है कि पुरी-हरिद्वार-कलिंग मार्ग पर चलने वाली उत्कल एक्सप्रेस की 13 बोगियां पटरी से उतर गईं। इस दुर्घटना में अभी तक 20 लोगों की मौत और 34 लोगों के घायल होने जानकारी मिली है।
बता दें 2012 में रेल मंत्रालय ने भारतीय रेल के सुरक्षा पहलुओं की जांच और सुधार का सुझाव देने के लिए एक उच्च स्तरीय समीक्षा समिति का गठन किया था और अनिल काकोडकर को इसका प्रमुख नियुक्त किया था। इस कमेटी के सुझावों में 5 साल की अवधि में 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने और एक वैधानिक रेल सुरक्षा प्राधिकरण के निर्माण का सुझाव दिया गया था।
हालांकि, सुरक्षा प्राधिकरण अभी तक तैयार नहीं हुआ है, इसके बावजूद रेलवे बोर्ड अत्यधिक बोझ से दबा हुआ है। जून में, रेलवे राज्य मंत्री राजेन गोहेन ने संसद में कहा था कि 53% दुर्घटनाएं ट्रेनों के पटरी से उतरने की वजह से होती हैं। उन्होंने यह भी बताया था कि काकोडकर समिति द्वारा सुझाए गए अधिकतर "व्यावहारिक उपायों" को लागू किया जा चुका है। लेकिन रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण का कोई रास्ता नहीं बनाया गया।
गोहेन ने बताया था कि "रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण बनाने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है। हालांकि नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वतंत्र संस्था रेलवे सुरक्षा आयोग पहले से ही काम कर रही है। यह स्वतंत्र रूप से रेलवे में सुरक्षा पहलुओं की समीक्षा और स्वीकृति का काम करती है।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए मंत्री ने लोकसभा को बताया था कि पिछले पांच सालों में (2012-13 से 2016-17) कुल 1,011 में से 347 रेल दुर्घटनाएं पटरी से उतरने की वजह से हुईं।
इस अवधि में घायल लोगों की कुल संख्या 1,634 थी जबकि पटरी से उतरने की वजह से रेल हादसों में 944 घायल हो गए थे।