आम जनजीवन में कई ऐसे मौके आते हैं जब हम अपने संसद का उदाहरण देते हैं। जैसे, बात-बात में ताकीद करना.. ‘देखिये आप जो बोल रहे हैं संसदीय नहीं है!.. आपकी भाषा असंसदीय है!’ आदि आदि। यह सब इसलिये, क्योंकि हम अपने भारतीय संसद के आचरण को आदर्श मानते रहे हैं।
लेकिन जब संसद में.. ऊंची आवाज में, कोई सांसद दूसरे सांसद पर खुलकर अभद्र गालियों की बौछार करने लगे.. दूसरे सांसद पर सांप्रदायिक टिप्पणी करने लगे.. उसे उग्रवादी-आतंकवादी बताने लगे.. वह भी, ऐसी गलीज भाषा में जो हम-आप आम रोजमर्रे में भी, मुंह से निकालने में , खुद को रोकते रहे हैं.. तो फिर, हमें खुद से पूछना पड़ता है.. अब हम इस ‘संसदीय संस्कार’ को क्या नाम दें?..
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