केरल : ‘कैग रिपोर्ट पर अमल होता तो बच जाती काफी जिंदगियां’

नई दिल्ली:  केरल की बाढ़ को सदी की सबसे भयावह बाढ़ कहा जा रहा है, लेकिन पिछले साल जारी कैग की रिपोर्ट में इस तरह की बाढ़ का अंदेशा जताया गया था। यदि इस रिपोर्ट को गंभीरता से लिया गया तो बाढ़ से हुए नुकसान को बहुत हद तक कम किया जा सकता था। पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़ का कहना है कि देश में बाढ़ प्रबंधन का बुरा हाल है। बाढ़ का प्रकोप ज्यादा होगा तो नुकसान ज्यादा होगा, मसलन राहत और पुनर्वास के लिए ज्यादा मुआवजा बंटेगा। 

विक्रांत कहते हैं कि राहत एवं पुनर्वास मुआवजे को लेकर अधिकारियों की धांधलियां आपदा स्थितियों को जस का तस बनाए रखने की रणनीति में जुटी रहती हैं। केरल में बाढ़ के लिए कोई एक फैक्टर जिम्मेदार नहीं है। बाढ़ के इस तांडव में कई कारकों का हाथ है। 

विक्रांत तोंगड़ ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “लगभग एक दशक से जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को लेकर आगाह किया जा रहा है। यकीनन, बाढ़ के विकराल रूप के लिए जलवायु परिवर्तन का बहुत बड़ा हाथ है लेकिन इसके साथ ही घरेलू कारक और सरकारी नीतियां भी उतनी ही जिम्मेदार हैं। बाढ़ को रोका नहीं जा सकता लेकिन इससे होने वाले नुकसान को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। हरित क्षेत्र कम होता जा रहा है, जिससे अनियंत्रित बारिश हो रही है।”

उन्होंने पिछले साल जारी कैग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आईएएनएस को बताया, “हमारा आपदा प्रबंधन दुरुस्त नहीं है। पिछले साल जारी कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि हमें आजाद हुए 70 साल से ज्यादा हो गए हैं लेकिन अभी तक बाढ़ के लिए आवंटित पैसे का सही ढंग से उपयोग नहीं हो पा रहा। हमारी बाढ़ प्रबंधन एवं पुनर्वास योजना पूर्ण रूप से क्रियान्वित नहीं हो रही है। इसके लिए आवंटित करोड़ों रुपये अधिकारियों के दौरों और उनकी सुविधाओं पर खर्च हो रहे हैं। इस रिपोर्ट पर बड़ा घमासान मचा था और कहा गया था कि इस तरह चलता रहा तो यह बड़ी त्रासदी को जन्म देगा।”

केरल में बाढ़ की इस भयावहता पर वह कहते हैं, “हम बाढ़ रोकने के लिए तैयार नहीं हैं और केरल में तो बिल्कुल भी तैयारी नहीं थी। इसमें राज्य के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की लापरवाही और उदासनी रवैये का बहुत बड़ा हाथ है लेकिन हां केंद्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की भूमिका राज्य की तुलना में फिर भी बेहतर है।”

विक्रांत ने कहा, “केरल में इस बार सामान्य से अधिक बारिश हुई है, जो पिछले कई वर्षो की तुलना में कहीं अधिक है। यही वजह रही कि इडुक्की बांध के पांचों द्वार खोलने पड़े लेकिन इससे पहले कोई माथापच्ची नहीं की गई कि 26 वर्षो में पहली बार बांध के पांचों द्वार खोलने पर स्थिति क्या हो सकती है और जो स्थिति हुई, वह सबके सामने हैं।”

वह कहते हैं, “कैग की रिपोर्ट पर गंभीरता से अमल किया जाता तो केरल की बाढ़ से हुए नुकसान को बहुत हद तक कम किया जा सकता था। जन एवं धन हानि कम हो सकती थी। कागजों पर जो पॉलिसी फल-फूल रही है, यदि वह वास्तविकता में सही ढंग से कार्यान्वि होती तो हम काफी जिंदगियां बचा सकते थे।”

विक्रांत राहत एवं बचाव कार्य में भ्रष्टाचार की पोल खोलते हुए कहते हैं, “आपको बताऊं हम हाल ही में अलीगढ़ गए थे। आपको यकीन नहीं होगा कि आजादी के बाद से अब तक वहां जलभराव की समस्या खत्म नहीं हुई है। मानसून के दिनों में मुख्य सड़कों पर नाव चलाकर जाना पड़ता है। ऐसी सड़कों पर जो पॉश इलाका है और वहां डीएम का आवास भी है। वहां ड्रेनेज सिस्टम को अभी तक दुरुस्त नहीं किया गया। क्यों? यदि इस समस्या को दुरुस्त कर लिया जाएगा तो पानी की निकासी के लिए हर साल आवंटित धनराशि मिलनी बंद हो जाएगी। फिर जेबें कैसे भरेंगी?”

वह आगे कहते हैं, “इस देश में बाढ़ प्रबंधन का यही हाल है। बाढ़ का प्रकोप ज्यादा होगा तो नुकसान ज्यादा होगा, मसलन राहत एवं पुनर्वास के लिए ज्यादा मुआवजा बंटेगा। अधिकारी इसी में खुश हैं।”

इस भ्रष्टाचार पर वह कहते हैं, “सिर्फ वित्तीय भ्रष्टाचार नहीं है, व्यावहारिक भ्रष्टाचार भी है लेकिन यह भी नहीं है कि सिर्फ इन धांधलियों से ही बाढ़ का खतरा बढ़ा है। बाढ़ प्रबंधन में रूटीन भ्रष्टाचार है, जो देश में हर जगह है। आपको यह मोदी जी के स्वस्थ भारत अभियान में भी देखने को मिलेगा। रक्षा संबंधी खरीद-फरोख्त में भी यह सब होता है। हमें जरूरत है, अपने सूचना तंत्र को मजबूत करने की। तमाम तरह की टेक्नोलॉजी है, जिनका बेहतर तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए। इस पर दूसरे देशों में ज्यादा काम होता है, उनसे सीखा जा सकता है। कैग ने भी तो यही कहा था कि आपदा प्रबंधन को उचित रूप से लागू नहीं किया गया है।” –रीतू तोमर

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