सिमडेगा (झारखंड): झारखंड के आदिवासी बहुल जिला सिमडेगा में महिलाएं अब अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के जरिए न सिर्फ खुद को सशक्त बना रही हैं, बल्कि ग्रामीण परिवेश में बदलाव का प्रतीक भी बन गई हैं।सिमडेगा जिले के ठेठईटांगर प्रखंड के एक आजीविका स्वयं सहायता समूह और पाकरटांर के विकास आजीविका स्वयं सहायता समूह सहित बानो प्रखंड के महिला समूह अब प्राकृतिक विधि से गुलाल तैयार कर रहे हैं। ये महिलाएं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर हर्बल गुलाल बना रही हैं। पलाश के सूखे फूलों से लाल रंग का गुलाल, पालक साग से हरा रंग, चुकंदर से गुलाबी रंग और हल्दी से पीला रंग का गुलाल तैयार किया जा रहा है। इस गुलाल से त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, क्योंकि यह पूरी तरह से प्राकृतिक है।
इन महिलाओं को सरकार के जेएसएलपीएस (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी) से सहायता मिली, और उन्होंने महिला समूह बनाकर अपनी कार्यशक्ति और हौसलों के साथ सफलता की ओर कदम बढ़ाए। होली के मौसम में ये महिलाएं जंगल-जंगल जाकर पलाश के फूल इकट्ठा करती हैं और इनका उपयोग करके गुलाल तैयार करती हैं। इसके अलावा, गेंदा फूल और पालक साग की खेती भी करती हैं, जो इनके व्यवसाय में मददगार साबित हो रहे हैं। इस वर्ष लगभग 200 किलोग्राम हर्बल गुलाल तैयार किया गया है, जिसे पलाश ब्रांड के नाम से पैकेज किया जा रहा है।
समूह की महिलाओं ने त्योहारों के अनुरूप अपना व्यवसाय बढ़ा लिया है। दीपावली के समय भी ये महिलाएं फूलों का माला बना कर बाजार में बेचती हैं। यह महिलाओं की सशक्तिकरण का प्रमाण है। अब वे न केवल घर के भीतर काम कर रही हैं, बल्कि वे एक उद्यमी के रूप में समाज में भी योगदान दे रही हैं। प्रशासन भी इन महिलाओं के काम को बढ़ावा दे रहा है, और पलाश मार्ट के जरिए उनके उत्पादों का बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है।
एक सरकारी कर्मी और समाजसेवी विनोद प्रसाद ने कहा, “यह महिलाएं पहले शराब का काम करती थीं, लेकिन अब इन समूहों में जुड़कर ये महिलाएं अच्छे काम कर रही हैं। ये महिला समूह प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर गुलाल और फूल माला तैयार करती हैं, जो सिमडेगा जिले के विभिन्न त्योहारों में उपयोग होती हैं। इन महिलाओं की आमदनी अब दिन-ब-दिन बढ़ रही है और हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में ये महिलाएं और भी सशक्त होंगी।”
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